1. जीवन में अनेकों बार दुःखी होना, विपत्तियों में पड़ना आदि जीव के जीवन की क्या कोई समस्या नहीं है?
2. जीवन भर कठिन परिश्रम करके धन-सम्पत्ति, परिवार आदि बढ़ाना और एक मिनट में शरीर सहित सब छोड़कर अच्छे-बुरे कर्मो की गहरी बाँध कर दूसरे शरीर में चल देना, जीव के जीवन की कोई समस्या नहीं है क्या?
3. जीवन में अनेकों बार शारीरिक कष्टों, रोगों, पीड़ाओं आदि को सहना (भोगना) मनुष्य जीवन की क्या कोई समस्या नहीं है
4. मानसिक उल्झनें, तथा मानसिक रोग क्या मनुष्य जीवन की समस्या नहीं हैं?
5 .बार बार जन्म, मृत्यु, जरा, व्याधि के चक्र में पड़े रहना मनुष्य जीवन की क्या कोई मम्भीर समस्या नहीं है?
( पुनरपि जननम, पुनरपि मरणम्, जठरे जननी, जठरे सयनम्) क्या एक बहुत बड़ी समस्या नहीं है।
6. कूकर, सूकर, बंदर, बिल्ली, चूहा आदि जैसे शरीरों में रहकर अनेकों प्रकार की यातनाएं (ताप) सहना, क्या जीव की एक गम्भीर समस्या नहीं है?
7. अपनी सन्तान, पति-पत्नी तथा स्वामी (मालिक) आदि के कटु बचनों से मिलने वाली पीड़ा क्या कोई आपको समस्या नहीं लगती है?
उपरोक्त सभी समस्याओं का समाधान (निराकरण) वेदांत करता है। जिसे “अध्यात्म विद्या”, “ब्रह्मविद्या”, “ज्ञान यज्ञ” अथवा “परा विद्या” कहते हैं।
इस विद्या का अध्ययन “गुरु-शिष्य “परम्परा से करने पर मोह से उत्पन्न सभी समस्याओं का हल, हर युग में होता रहा हैं और होता रहेगा। यही “परा विद्या” की महिमा है, जो भौतिक विद्याओं से विलक्षण है अर्थात् अलौकिक है। इसे पढ़ने और पढ़ाने वाले इस समय दोनों दुर्लभ हैं।
|| ओम शान्तिः शान्तिः शान्तिः || मो.9580882032