शास्त्र कहते हैं -कि बड़े भाग्य से जीव ने मनुष्य का शरीर प्राप्त करके विवाह किया, धन-सम्पत्ति कमाई बच्चे पैदा किये, बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई, समस्त भोग विलास के साधन एकत्र करके भोगे, धार्मिक कार्य किये, तीर्थ-व्रत किये, गंगा-संगम में स्नान किया, आरती-पूजा आदि की, कथायें अर्थात् इतिहास सुने सुनाए, इन सबको करने में पाप-पुण्य हुए। इसके बाद समस्त वैभव, सुविधायें कोठी, बंगला, मकान, शिक्षा, परिवार, धन – संपत्ति तथा शरीर आदि को छोड़कर अन्य किसी पशु-पक्षी, मनुष्य आदि के शरीर में चले गये, तो हासिल क्या हुआ अर्थात् मिला क्या?
जिसके लिए ‘जीव” को न जाने “कितने जन्मों के बाद मनुष्य देह ईश्वर की विशेष कृपा से अपने सत् स्वरूप को जानने के लिए मिली थी अर्थात् परमात्मा से अपनी एकता को जानने के लिए मिली थी। वह कार्य तो उसने किया ही नहीं, माया में ही खेलता रहा, माया को ही पकड़ने की कोशिस करता रहा। मनुष्य जीवन का वास्तविक लाभ तो मिला ही नहीं। तत्व ज्ञान तो हुआ ही नहीं, भक्ति तो मिली ही नहीं, जड़ – चेतन की ग्रन्थि तो खुली ही नहीं, पुनर्जन्म का बन्धन तो छूटा ही नहीं । तो फिर मिला क्या ?
खान पान सुख भोग में पशु भी परम सुजान |
काह अधिकता मनुज की जो न मिटा अज्ञान ||
जो न तरइ भव सागर नर समाज अस पाइ |
सो कृत निंदक मंद मति आत्म हनन गति जाइ ।।
मो० 9580882032 महेशानंद