जो लोग भगवान् अथवा देवी – देवताओं को अचेतन मूर्तियों की सेवा, पूजा, आरती, भोग, चढ़ावा तथा दर्शन आदि तो नहीं करते हैं, परन्तु चेतन मूर्तियों (प्राणियों) विशेषकर मनुष्यों के साथ धोखाधड़ी, विश्वासघात, झूठ, छल, कपट, अत्याचार अन्याय, अनीति तथा अमयोदित बात, व्यवहार नहीं करते हैं तथ सभी को भगवान् (ईश्वर) की चलती-फिरती प्रतिमा मानकर सेवा तथा बात व्यवहार करते हैं। उन पर ईश्वर एवम् देवी-देवता अति शीघ्र प्रसन्न होकर उनके पास आगे प्रशस्त करते हैं।
1- जिसने अपने बॅचन को कभी झूठा (असत्य) न होने दिया हो ।
2- मानव धर्म से कभी दूर न हुआ हो।
3- बेईमानी, अन्याय, स्वार्थ, पक्षपात तथा लोभ के आचरण से सदैव दूर रहा हो ।
4- मनुष्यों के हित में मन, वाली, कर्म से रत रहा हो।
5- मनुष्य जाति के लोगों में अद्वैत का भाव रहा हो अथवा ईश्वर का भाव रहकर व्यवहार हुआ हो । ऐसे व्यक्ति के ऊपर ईश्वर को विशेष कृपा सदैव रहती है।
ऐसे किसी शुभ कार्य को करने का संकल्प नहीं करना चाहिए, जिसको करने से ‘चिप्जड़ ग्रन्थि खुलने की जगह और ओपल मजबूत होती हो ।
प्रश्न- बहुत लम्बे समय से वेदान्त विद्या का कभी – 2 श्रवण, अध्ययन आदि करने पर भी वास्तविक ज्ञान लाभ लोगों को क्यों नहीं होता है?
(उत्तर)- जब तक कोई विरक्त होकर महाअज्ञानी बनकर ज्ञानी की शरण में विद्यार्थी की तरह लगातार 2-4 वर्ष श्रवण मनन निदिध्यासन तथा तत्त्व विचार आदि प्रतिदिन लगन से नहीं करेगा। तब तक उसे पूर्ण लाभ नहीं मिलेगा।
यदि सम्पन्न परिवार में मनुष्य शरीर को प्राप्त करके, अपने परम सत् स्व स्वरूप का तत्त्वयानी महात्माओं के पास रहकर “अध्यात्म विद्या” के द्वारा नहीं जान पाये, तो अन्य योनियों के शरीरों में यह सुविधा नहीं मिलेगी ।