जब भी संछिप्त भगवत गीता का स्वाध्याय करें तब यह भावना कतई न रखें कि भगवान श्रीकृष्ण मोहनीय अर्जुन को उपदेश देते हैं।
बल्कि दृढ़ता से सदैव यह भावना रखने कर अध्ययन करें कि परमात्मा रूपी श्रीकृष्ण मोहनीय जीवात्मा रूपी अर्जुन को निमित्त बनाकर हम सबके अर्थात जीव मात्र के कल्याण के लिए मुझे उपदेश कर रहे हैं।