काल चक्र |हिंदू-मुसलमान
काल चक्र में धनवान-कंगाल और कंगाल-धनवान, राजा-भिकारी और भिकारी-राजा हो जाते हैं। समुद्र-पर्वत और पर्वत समुद्र खेत-तालाब और तालाब-खेत लोहा मिट्टी मिट्टी लोहा हो जाती है। मंदिर-मस्जिद और मस्जिद-मंदिर, हिंदू-मुसलमान, मुसलमान-हिंदू , पाकिस्तानी-हिंदुस्तानी और हिंदुस्तानी पाकिस्तानी हो जाते हैं। मनुष्य- देवता, देवता-मनुष्य, पशु-मनुष्य, मनुष्य-पशु, गाय-भैंस और भैंस-गाय बन जाती हैं। देवता-दैत्य, दैत्य-देवता, मच्छर-मनुष्य और मनुष्य-मच्छर शूद्र-ब्राह्मण, ब्राह्मण-शुद्र हो जाते हैं। मंदिर-कूड़ाघर और कूड़ाघर-मंदिर मूर्ति-अमूर्ति और अमूर्ति-मूर्ति बन जाती हैं।
पिता-पुत्र तथा पुत्र-पिता, बहन-पत्नी, पत्नी-बहन, मां-पुत्री या पौत्री या पत्नी बन जाती है। स्त्री-पुरुष और पुरुष-स्त्री, अपने-पराए, पराए-अपने शत्रु-मित्र, मित्र-शत्रु हो जाते हैं। पापी-पुण्यात्मा, पुण्यात्मा-पापी, अधिकारी-कर्मचारी और कर्मचारी-अधिकारी हो जाते हैं। विद्वान-मुर्ख और मुर्ख-विद्वान, सेवक-स्वामी और स्वामी-सेवक हो जाते हैं। रोगी-निरोगी, निरोगी-रोगी, शिशु-जवान और जवान-वृद्ध. बलवान-निर्मल और निर्मल-बलवान हो जाते हैं। महारथी-सारथी और सारथी-महारथी हो जाते हैं। धर्म-अधर्म और अधर्म-धर्म बन जाता है, पूर्व-पश्चिम, पश्चिम-पूर्व, सत्य-झूठ, झूठ-सत्य, जन्म- मृत्यु, मृत्यु-जन्म, सुख-दुख, दुख-सुख, गृहस्थ-सन्यासी, सन्यासी-गृहस्थ हो जाते हैं। सुंदर-कुरूप और कुरूप-सुंदर, नदिया-नाले और नाले-नदियां, फल-मिट्टी, मिट्टी-फल बन जाती हैं।
नगर-ग्राम-जंगल और जंगल-नगर-ग्राम, शरीर-मिट्टी, मिट्टी-शरीर, छप्पन भोग-मिट्टी और मिट्टी-छप्पन भोग बन जाती है। समय के चक्र में सब कुछ बदलता रहता है, बदलता रहता है, यहां तक कि मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार (अंतःकरण) संस्कार, आसक्ति, वासना, अहंता, ममता, सोच, विचार, भाव, चाह, श्रद्धा तथा निष्ठा-आस्था आदि सब बदलते रहते हैं।
जो इस काल चक्र को अच्छी तरह से जानता है वह किसी बात-व्यवहार में दुराग्रह नहीं करता है। वह सभी प्रकार के अहंकार, अभिमान तथा मद से बचा रहता है, झूठे-काल्पनिक, दृश्य-प्रपंच में सत्य बुद्धि नहीं रखता-विरक्त रहता है। वह तो काल-चक्र से बाहर निकलने के लिए तत्वज्ञानी के सानिध्य में रहकर उस वस्तु को जानने में समय शक्ति तथा मन, बुद्धि, चित्त को लगाता है, जिस पर काल-चक्र सृष्टि चक्र तथा जीवन चक्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जो काल की पहुंच से परे है। ऐसी वस्तु को जानना बुद्धिजीवी सज्जनों का परम कर्तव्य है, यही सर्वोत्कृष्ट धर्म है।
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